भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति}} {{KKPageNavigation |पीछे=चतुर्थ प्रश्न / भाग २ ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=चतुर्थ प्रश्न / भाग २ / प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति
|आगे=पंचम प्रश्न / भाग २ / प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति
|सारणी=प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति
}}

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
शिवि पुत्र सात्विक सत्यकाम ने पूछा ऋषि पिप्लाद से,
भगवन! मनुष्यों में जो कोई ॐ को आह्लाद से।
पर्यंत मृत्यु ध्यान चिंतन करते वे किस लोक को,
करते विजित , यह प्रश्न करिए शांत मेरे विवेक को॥ [ १ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
हे सत्यकाम ! सुनो प्रिये जो निश्चय यह ओंकार है,
परब्रह्म यह ही अपर ब्रह्म भी, लक्ष्य भूत प्रकार है।
इस एक ही अवलम्ब के चिंतन से ब्रह्म महेश को,
अनुसार भाव के पाते ब्रह्म को, परम प्रभु परमेश को॥ [ २ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्रा प्रथम, ऋग्वेद रूपा है यथा,
तप श्रद्धा व् संयम से जिसकी, ऋद्धि मान की है प्रथा।
ओंकार का साधक यदि ऐश्वर्य में आसक्त है,
हो प्रीति के अनुरूप प्राप्ति जिसमें मन अनुरक्त है॥ [ ३ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्रा द्वितीया यजुर्वेद का रूप है,<br>
सुख भूः, भुवः की सिद्धि देती, साधकों को अनूप है।<br>
वे चन्द्र लोके विविध एश्वेर्यों का सुख हैं भोगते,<br>
पुनि जन्म लेते मृत्यु लोके, क्षीण जब हों शुभ कृते॥ [ ४ ]<br><br>
</span>