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{{KKRachna
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGhazal}}<poem>धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो <br>ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो
</poem>