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नहीं यह भी नहीं / निदा फ़ाज़ली

59 bytes added, 16:59, 13 अक्टूबर 2020
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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>
नहीं यह भी नहीं
 
यह भी नहीं
 
यह भी नहीं, वोह तो
 
न जाने कौन थे
 
यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं
 
सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं
 
सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं
 
जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर
 
मेरी आंखों के आगे
 
मेरे बच्चों को जलाया था
 
वोह तो कोई और थे
 
वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब
 
मगर हाँ
 
पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ
 
वो उस जंगल से आये थे
 
जहाँ की औरतों की गोद में
 
बच्चे नहीं हँसते
</poem>
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