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Kavita Kosh से
बाँस की पोरी
निकम्मी खोखल मैं
बेसुरी , कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई ‘बाँसुरी’
7
बड़ी सुबह
सूरज मास्टर 'दा’
किरण-छड़ी
ले, आते धमकाते