भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
'''दुनिया रैन-बसेरौ'''
जा दिन काल करैगौ फेरौ-
कोई बस न चलैगौ तेरौ।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
निखरै कंचन जैसी काया,
चन्दन-गंधी शीतल छाया।
ऐसे मानसरोवर वारे-
हंसा उड़ि कहुँ अनत सिधारें,
रे पंछी!-
दुनिया रैन-बसेरौ।।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
'''दुनिया रैन-बसेरौ'''
जा दिन काल करैगौ फेरौ-
कोई बस न चलैगौ तेरौ।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
निखरै कंचन जैसी काया,
चन्दन-गंधी शीतल छाया।
ऐसे मानसरोवर वारे-
हंसा उड़ि कहुँ अनत सिधारें,
रे पंछी!-
दुनिया रैन-बसेरौ।।
रे प्रानी!-
मत कर गरब घनेरौ।।
</poem>