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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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घर में डाली गई है फूट बहुत
अपना रिश्ता है पर अटूट बहुत
आना जाना लगा है यादों का
आज मसरूफ़ है ये रूट बहुत
कौन कहता है काम काज नहीं
आज कल बिक रहा है झूट बहुत
दिल नहीं अब हमारे क़ाबू में
हमने दे दी थी इस को छूट बहुत
ग़म नहीं कोई, दुख नहीं कोई
बोलता हूँ मैं ख़ुद से झूट बहुत
</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
घर में डाली गई है फूट बहुत
अपना रिश्ता है पर अटूट बहुत
आना जाना लगा है यादों का
आज मसरूफ़ है ये रूट बहुत
कौन कहता है काम काज नहीं
आज कल बिक रहा है झूट बहुत
दिल नहीं अब हमारे क़ाबू में
हमने दे दी थी इस को छूट बहुत
ग़म नहीं कोई, दुख नहीं कोई
बोलता हूँ मैं ख़ुद से झूट बहुत
</poem>