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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
दिल पर हमारे ज़ख़्म हैं ये सब नये नये
तरकश में रोज़ तीर हैं साहब नये नये
हमने तो सब के सामने रख दी है अपनी बात
दिन भर निकाले जायेंगे मतलब नये नये
हमने भी ख़ूब ज़ख़्म सहे दुख उठाये हैं
ज़ालिम की ज़द में आए थे हम जब नये नये
हमको भी कुछ सिखाईये आदाब इश्क़ के
हम भी हुए हैं दाख़िल ए मकतब नये नये
पहले तो होगा दोस्तों का इंतज़ाम
सपने दिखाए जायेंगे फिर सब नये नये
</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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दिल पर हमारे ज़ख़्म हैं ये सब नये नये
तरकश में रोज़ तीर हैं साहब नये नये
हमने तो सब के सामने रख दी है अपनी बात
दिन भर निकाले जायेंगे मतलब नये नये
हमने भी ख़ूब ज़ख़्म सहे दुख उठाये हैं
ज़ालिम की ज़द में आए थे हम जब नये नये
हमको भी कुछ सिखाईये आदाब इश्क़ के
हम भी हुए हैं दाख़िल ए मकतब नये नये
पहले तो होगा दोस्तों का इंतज़ाम
सपने दिखाए जायेंगे फिर सब नये नये
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