भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
रामराज की जय हो, जय हो,
आग लगा दी पानी में ।
मन्दिर-मस्जिद में बैठा, उस
बुत के पढ़े कसीदे,
अखिल विश्व की सत्ता,
ने ही मूँद लिए हैं दीदे ।
फिर कोई जोखू बन आया
असलम दुखद कहानी में ।
ठकुरसुहाती करें चौधरी
डाल बुद्धि पर ताला,
लगा विवेकी चिन्तन में है
जातिवाद का जाला ।
घायल बचपन हुआ बिलोते
कट्टर धर्म मथानी में ।
अनाचार की विषबेलों ने
ज़हर हवा में घोला,
पाखण्डी चेले करते हैं
रोज़ - रोज़ ही रोला ।
न्याय-तुला भी नहीं उड़ेले
पानी चढ़ी जवानी में ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
रामराज की जय हो, जय हो,
आग लगा दी पानी में ।
मन्दिर-मस्जिद में बैठा, उस
बुत के पढ़े कसीदे,
अखिल विश्व की सत्ता,
ने ही मूँद लिए हैं दीदे ।
फिर कोई जोखू बन आया
असलम दुखद कहानी में ।
ठकुरसुहाती करें चौधरी
डाल बुद्धि पर ताला,
लगा विवेकी चिन्तन में है
जातिवाद का जाला ।
घायल बचपन हुआ बिलोते
कट्टर धर्म मथानी में ।
अनाचार की विषबेलों ने
ज़हर हवा में घोला,
पाखण्डी चेले करते हैं
रोज़ - रोज़ ही रोला ।
न्याय-तुला भी नहीं उड़ेले
पानी चढ़ी जवानी में ।
</poem>