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}}
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<poem>
1.
नद से मिली
भोरे-भोरे किरणें
छटा निराली।
2.
गंगा पवित्र
नहीं होती अपवित्र
भले हो मैली।
3.
नदी की सीख-
हर क्षण बहना
नहीं थकना।
4.
राजा या रंक
सबके अवशेष
नदी का अंक।
5.
सदा हरती
गंगा पापहरणी
जग के पाप।
6.
नदी का धैर्य
उसकी विशालता,
देती है सीख।
7.
दुःखहरणी
गंगा निर्झरनी
पापहरणी।
8.
अपना प्यार
बाँटती धुआँधार
प्यारी नदियाँ।
9.
सरिता-घाट
तन अग्नि में भस्म
अंतिम सत्य।
10.
सबके छल
नदी है समेटती
कोई न भेद।
11.
सरजू तीरे
महाकाव्य सर्जन
तुलसीदास।
12.
तड़पी नदी
सागर से मिलने,
मानो हो पिया।
13.
बेपरवाह
मिलन को बेताब
नदी बावरी।
14.
सिंधु से मिली
सर्प-सी लहराती
नदी लजाती।
15.
नदियाँ प्यासी
प्रकृति का दोहन
इंसान पापी।
16.
तीन नदियाँ
पुराना बहनापा
साथ फिरती।
17.
बढ़ी आबादी
कहाँ से लाती पानी
नदी बेचारी।
18.
नदी का तट
सभ्यता व संस्कृति
सदियाँ जीती।
</poem>
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|रचनाकार=जेन्नी शबनम
|संग्रह=
}}
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<poem>
1.
नद से मिली
भोरे-भोरे किरणें
छटा निराली।
2.
गंगा पवित्र
नहीं होती अपवित्र
भले हो मैली।
3.
नदी की सीख-
हर क्षण बहना
नहीं थकना।
4.
राजा या रंक
सबके अवशेष
नदी का अंक।
5.
सदा हरती
गंगा पापहरणी
जग के पाप।
6.
नदी का धैर्य
उसकी विशालता,
देती है सीख।
7.
दुःखहरणी
गंगा निर्झरनी
पापहरणी।
8.
अपना प्यार
बाँटती धुआँधार
प्यारी नदियाँ।
9.
सरिता-घाट
तन अग्नि में भस्म
अंतिम सत्य।
10.
सबके छल
नदी है समेटती
कोई न भेद।
11.
सरजू तीरे
महाकाव्य सर्जन
तुलसीदास।
12.
तड़पी नदी
सागर से मिलने,
मानो हो पिया।
13.
बेपरवाह
मिलन को बेताब
नदी बावरी।
14.
सिंधु से मिली
सर्प-सी लहराती
नदी लजाती।
15.
नदियाँ प्यासी
प्रकृति का दोहन
इंसान पापी।
16.
तीन नदियाँ
पुराना बहनापा
साथ फिरती।
17.
बढ़ी आबादी
कहाँ से लाती पानी
नदी बेचारी।
18.
नदी का तट
सभ्यता व संस्कृति
सदियाँ जीती।
</poem>