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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
|अनुवादक=
|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पीटा है जिसको वक़्त ने लोहार की तरह ।
वो हो गया है वक़्त को तलवार की तरह ।।
इस तीरगी के बीच में जलता रहा है जो ।
वो शख़्स बेमिसाल है अंगार की तरह ।।
जिसने कहीं इरादतन बाँटी है रोशनी ।
उसको सज़ा मिली है गुनहगार की तरह ।।
उन रहबरों की रहबरी पे क्या गुमाँ करें ।
अपनों से बोलते जो ज़मींदार की तरह ।।
कानूनगो सुबह के उन्हें किस तरह कहें ।
उठते हैं बिस्तरों से जो बीमार की तरह ।।
मंज़िल हमारी ख़ून की गर्मी के साथ है ।
रग-रग में दौड़ती है जो रफ़्तार की तरह ।।
</poem>
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|रचनाकार=रमेश रंजक
|अनुवादक=
|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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पीटा है जिसको वक़्त ने लोहार की तरह ।
वो हो गया है वक़्त को तलवार की तरह ।।
इस तीरगी के बीच में जलता रहा है जो ।
वो शख़्स बेमिसाल है अंगार की तरह ।।
जिसने कहीं इरादतन बाँटी है रोशनी ।
उसको सज़ा मिली है गुनहगार की तरह ।।
उन रहबरों की रहबरी पे क्या गुमाँ करें ।
अपनों से बोलते जो ज़मींदार की तरह ।।
कानूनगो सुबह के उन्हें किस तरह कहें ।
उठते हैं बिस्तरों से जो बीमार की तरह ।।
मंज़िल हमारी ख़ून की गर्मी के साथ है ।
रग-रग में दौड़ती है जो रफ़्तार की तरह ।।
</poem>