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Kavita Kosh से
अभी तो बात लम्हों तक है, सालों तक नहीं आई
अभी मुस्कानों की नौबत भी नालों तक नहीं आई
अभी तो कोई मज़बूरी मजबूरी ख़यालों तक नहीं आई
अभी तो गर्द पैरों तक है, बालों तक नहीं आई
कहो तो लौट जाते हैं…
चलो एक फ़ैसला करने शजर<ref> दरख्तदरख़्त</ref> की ओर जाते हैं
अभी काजल की डोरी सुर्ख़ गालों तक नहीं आई
ज़बाँ दांतों तलक है, ज़हर प्यालों तक नहीं आई