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भारतीय नारी / हरदीप कौर सन्धु

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भारतीय नारीनिभाती हैऊँची पदवियों से भीऊँचे रिश्तेकभी बेटी ....कभी माँ बनकरया फिर किसी की पत्नी बनकरफिर भी मर्दये सवाल क्यों पूछे -कैसे बढ़ जाएगीउम्र मेरी ?तेरे रखे व्रतों से ?अपनी रक्षा के लिएअगर आज भी तुम्हें बाँधना है धागाइस इक्कीसवीं सदी मेंतेरा जीने का क्या फ़ायदा ?सुन लो.... ओ भारतीय मर्दोयूँ ही अकड़ना तुम छोड़ोआज भी भारतीय नारीकरती है विश्वासनहीं-नहीं....अन्धा विश्वासऔर करती हैप्यार बेशुमार-अपने पतिबेटे या भाई से ।जिस दिन टूट गयायह विश्वास का धागाव्रतों से टूटाउस का नाताकपड़ों की तरहपति बदलेगीफिर भारतीय औरतजैसे आज है करतीइश्क़ पश्चिमी औरतन कमज़ोरन अबला-विचारी ।मज़बूत इरादे रखतीआज भारत की नारीधागे और व्रतों सेरिश्तों की गाँठऔर मज़बूत वह करतीजो जल्दी से नहीं खुलती,प्यार जताकरप्यार निभातीभारतीय समाज कीनींव मजबूत बनाती ।दो औरत कोउसका प्राप्य सम्माननहीं तो.....रिश्तों में आई दरारझेलने के लिए हो जाओ तैयार !!
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