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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
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<poem>
चाहो तो छीन लो
तुम मुझसे ये रोटियाँ,
छीन लो इन हवाओं को,
मगर मत छीनो मुझसे
तुम, मेरी जान,
अपनी यह प्यारी हँसी !

इन गुलाबों को मुझसे
मत करो दूर !

ये कँटीले फूल
जो तुमने तोड़ रखे हैं !

वह पानी जो फूट जाता है
अकस्मात उन्माद से,
तुम्हारे भीतर,
उभरे हुए चाँदी के तमाम तरँग !

मेरे सँघर्ष काफ़ी कठिन हैं,
मैं आता हूँ वापस
हताश और थका हुआ
देखकर कभी न बदलने वाली
इस पृथ्वी को,

मगर जैसे ही तुम्हारी हँसी पाती है
प्रवेश मेरे भीतर,
यह उठती है:
आकाश की तरफ़
मेरी कामना करते हुए,
और खुल जाते हैं तब मेरे लिए
जीवन के सारे बन्द दुर्ग द्वार...

'''तनुज द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित'''
</poem>
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