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सूर्य व्यर्थ समय नहीं गँवाता —प्रचण्ड — प्रचण्ड सूर्य हम पर शासन करता हुआ,
उसकी तनी हुई भृकुटियाँ, उसके स्थिर जबड़े,
उसका बालदार वक्ष खुला हुआ दूर समुद्र तक ।
दोपहरें अथाह थीं
देहात में बच्चों से रहित रविवार जितनी लम्बी,
पूरे दिन यहाँ दोपहर रहती है, उगते सूर्य से डूबते सूर्य तक ।तक।
अगर हम कुछ कम प्यासे होते तो हमारे दिमाग जकड़े हुए नहीं होते,
अगर वहाँ एक पेड़ होता पहाड़ी पर या द्वीप की चोटी पर ।पर।
अगर मुट्ठी भर छाया होती, कम कड़वाहट होती, कम अन्याय होता
अब हमें किसी पेड़ की आकृति याद नहीं