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<poem>
गिर्द दीवारें चार
आज़ाद इनसान ।
घास का गद्दा, टिन का मग्गा ।
धारीदार पोशाक ।

रेशमी पँखों पर अबाबीलों की उड़ान
जो चढ़ जाती हैं बादलों तक ।
कहीं से जहाज़ की रवानगी की सीटी
आकर कानों में भर जाती है ।
दण्ड दो, ओ अन्धी आँखों वाली !
मैं जानता हूँ कानून
जो कुछ मैंने किया, उसे करने की ज़िम्मेदारी
मैंने ज़िन्दगी से पाई ।

पानी का मग्गा होंठों तक
उठाती हूँ, इनसान
यह जीवन का जाम
शुक्र अदा करते हुए इसे पीती हूँ ।

'''मूल फ़िनिश भाषा से अनुवाद : सईद शेख'''
</poem>
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