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<poem>
यहाँ भी है वसन्त
दीवार की बुनियाद से फूट रहे हैं
पीले फूल
और फिर शोर मचाते बच्चे खेल रहे हैं,
क़दमों की खड़खड़ाहटें ।
जैसे कि उस प्यारे दर्द को महसूस किया,
सुनने के लिए रुक जाऊँगी ।
तुम्हें, ओ गलियारे के बच्चे,
फिर याद करती हूँ — जीवन की नाभि को ।

जब मैं धरती को अपनी बाँहों में लेती हूँ
तुम्हारा पैर कहीं इस वसन्त के ताप को पाऐगा ।
बच्चे, क्या तुमने उसे महसूस किया
जब तुम्हारी उँगली ने पीले फूल के स्वर्ण को स्पर्श किया ?

'''मूल फ़िनिश भाषा से अनुवाद : सईद शेख'''
</poem>
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