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<poem>
ऐ मिरी जान इसी घर को तू जन्नत कह दे 
ज़िन्दगी साथ बिताने को मुहब्बत कह दे

रूह से रूह की दूरी भी कभी नापेंगे 
पास बैठे हैं अभी ज़ीस्त<ref>ज़िन्दगी (life)</ref> को सोहबत<ref>संगति (togetherness)</ref> कह दे

शाम सूरज का समन्दर में उतरना तन्हा 
हाथ में हाथ ज़रा थाम के चाहत कह दे

मेरे ख़्वाबों को तू ता’बीर<ref>अर्थ (interpretation)</ref> का ताना तो न दे  
कुछ नहीं तो इन्हें इम्कान-ए-हक़ीक़त<ref>यथार्थ की सम्भावनाएँ (possibilities of the real)</ref> कह दे 

तू तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref> है हक़ीक़त में रहा करती है 
कोई पूछे जो पता मुझको सुकूनत<ref>निवास (residence)</ref> कह दे 

ढाल सकता हूँ क़यामत का नशा साग़र में 
ज़र्फ़-ए-बातिन<ref>अन्तरात्मा का बर्तन (pot of the soul)</ref> में जगह ख़ूब तो वुस’अत<ref>आयतन (volume)</ref> कह दे 

आइना-ख़ाना-ए-दुनिया<ref>दुनिया रूपी शीशाघर (mirror-house of the world)</ref> में ख़ुदी का ये हुजूम 
कम से कम तू तो मिरी बूद (existence)<ref>अस्तित्व (</ref> को नुदरत<ref>अनोखापन (rarity, newness)</ref> कह दे

एक होता तो वो आलम के सिवा क्या होता 
दो की मौजूदगी क़ुदरत की शरारत कह दे 

लोग तो खेल समझते हैं इन्हें लफ़्ज़ों का 
मेरी ग़ज़लों को तू आशिक़ की बसीरत<ref>अन्तर्दृष्टि (inner eye)</ref> कह दे  
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