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|संग्रह=बाद्लेयर और उनकी कविता / मदन पाल सिंह
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'''Un plaisant'''<ref>त्योहार और मेले कुछ लोगों के लिए बहुत कुछ लाते हैं और बहुतों के लिए कुछ भी नहीं। आधुनिक वस्त्रों यानी समकालिक व्यक्तिगत मान्यताओं, आधुनिक समाज की अमानवीयता में भिंचा हुआ और अपनी मूर्खता में गर्वित आदमी ग़ुलाम गधे के प्रति सहानुभूति रखने की अपेक्षा उसका मज़ाक़ उड़ा रहा है । अन्ततः लेखक इस विचार को आधुनिक फ्रांस की प्रतिनिधि भावना के रूप में पाता है । यहाँ गधा कौन हैं ? कहने की जरूरत नहीं. मजे की बात यह कि गधा नए दौर के इस आधुनिक सज्जन पर ध्यान नहीं देता । इस रचना के अतिरिक्त बोदलेअर के एक अन्य संकलन Mon cœur mis à nu (मेरा अनावृत रखा ह्रदय ) में इसी तरह की राजनैतिक-सामाजिक आलोचना के अनेक अक़्स देखे जा सकते हैं ।</ref>

यह नए साल का धूम-धड़ाके वाला मौक़ा था । मिट्टी और बर्फ़ हज़ारों गाड़ियों द्वारा पार किए जाने के कारण छितराई हुई थी। टॉफी और खिलौने चमक रहे थे । चारों तरफ़ लालच, धनलोलुपता और निराशा के झुण्डों की भिनभिनाहट व्याप्त थी । बड़े शहर का आधिकारिक प्रलाप ऐसा था कि जैसे वह किसी एकान्तवासी, त्यागी मस्तिष्क की पूर्ण दृढ़ता को भी विचलित करने के लिए पर्याप्त हो । इस ऊधम और हलचल के बीच में, साँटे से लैस उजड्ड गँवार द्वारा परेशान किए गए एक गधे ने दुलकी चाल से दौड़ना शुरू कर दिया ।

जैसे ही गधा फुटपाथ के कोने पर मुड़ने ही वाला था कि तभी वहाँ नफ़ासत से भरे एक सज्जन प्रकट हुए । दस्ताने पहने हुए चिकने-चुपड़े महाशय बिलकुल नए लकदक कपड़ों में भिंचे दिखे । उनकी टाई क्रूरता की हद तक खिंची हुई थी । वह तेज़ी से इस बेचारे जानवर के सामने नतमस्तक होकर झुके और अपना हैट उतारते हुए बोले : ‘‘मैं आपके अच्छे स्वास्थ्य और सुखी जीवन की कामना करता हूँ ।“ उसके बाद वह बेहूदी आत्मसन्तुष्टि का भाव लिए, साथ वाले लोगों की तरफ़ मुड़ गए । ऐसा लगा जैसे कि वह अपने सन्तोष की स्वीकृति के लिए उनसे प्रार्थना कर रहे हों । गर्दभ ने इस शानदार जोकर को नहीं देखा और उसने उमंग के साथ अपनी ज़िम्मेदारी और फ़र्ज़ की आवाज़ पर भागना जारी रखा ।

मुझे अचानक इस शानदार मूर्ख के ख़िलाफ़ एक प्रचण्ड रोष ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया । यह जड़बुद्धि मुझे फ्रांस की सम्पूर्ण आत्मा का केन्द्र-बिन्दु लगा ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन पाल सिंह'''
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