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<poem>
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल जानि परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मेरो मुख लपटायो॥ देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे ऊँचे धरि लटकायो। हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें कैसे करि पायो॥
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप प्रताप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥
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