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|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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<poem>
आज मुंडेर पर
कागा बोला,
हिचकी आई
मन डोला ।

कि रोटी तवे से
गिर पड़ी
सोचने लगी
खड़ी-खड़ी ।

माँ कहती थी
कागा बोला है
तो कोई आयगा
आने वाला
खुशखबरी लाएगा ।

मैंने निगाह टिका दी
खिड़की के पार
और करने लगी
उस अजनबी का इंतज़ार
कंगारूओं के देश में ।
</poem>