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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आज मुंडेर पर
कागा बोला,
हिचकी आई
मन डोला ।
कि रोटी तवे से
गिर पड़ी
सोचने लगी
खड़ी-खड़ी ।
माँ कहती थी
कागा बोला है
तो कोई आयगा
आने वाला
खुशखबरी लाएगा ।
मैंने निगाह टिका दी
खिड़की के पार
और करने लगी
उस अजनबी का इंतज़ार
कंगारूओं के देश में ।
</poem>
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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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आज मुंडेर पर
कागा बोला,
हिचकी आई
मन डोला ।
कि रोटी तवे से
गिर पड़ी
सोचने लगी
खड़ी-खड़ी ।
माँ कहती थी
कागा बोला है
तो कोई आयगा
आने वाला
खुशखबरी लाएगा ।
मैंने निगाह टिका दी
खिड़की के पार
और करने लगी
उस अजनबी का इंतज़ार
कंगारूओं के देश में ।
</poem>