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|रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
चाँदी की थाली में, सोने की चम्मच से खाने वाले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
गधे बन गए अरबी घोड़े,
नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े,
एसी में अय्यासी करते,
कुछ जननायक बहुत निगोड़े,
खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
कल तक थे जितने नालायक,
उनमें से कुछ आज विधायक,
सौदों में खा रहे दलाली,
ये स्वदेश के भाग्यविनायक,
लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
भावनाओं को जब भड़काते,
तब मुद्दे भरपूर भुनाते,
कैसे क़ायम रहे एकता,
चाल दोहरी ये अपनाते,
सत्ता पर क़ाबिज़ रहने को, बन जाते हैं भोले-भाले ।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले ।।
</poem>
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चाँदी की थाली में, सोने की चम्मच से खाने वाले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
गधे बन गए अरबी घोड़े,
नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े,
एसी में अय्यासी करते,
कुछ जननायक बहुत निगोड़े,
खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
कल तक थे जितने नालायक,
उनमें से कुछ आज विधायक,
सौदों में खा रहे दलाली,
ये स्वदेश के भाग्यविनायक,
लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले ।
महलों में रहने वाले, करते घोटालों पर घोटाले ।।
भावनाओं को जब भड़काते,
तब मुद्दे भरपूर भुनाते,
कैसे क़ायम रहे एकता,
चाल दोहरी ये अपनाते,
सत्ता पर क़ाबिज़ रहने को, बन जाते हैं भोले-भाले ।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले ।।
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