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पटकथा / पृष्ठ 7 / धूमिल

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|सारणी=पटकथा / धूमिल
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<poem>मेरी नींद टूट चुकी थी<br>मेरा पूरा जिस्म पसीने में<br>सराबोर था। मेरे आसपास से<br>तरह-तरह के लोग गुजर गुज़र रहे थे।<br>हर तरफ हलचल थी,शोर था।<br>और मैं चुपचाप सुनता हूँ<br>हाँ शायद -<br>मैंने भी अपने भीतर<br>(कहीं बहुत गहरे)<br>‘कुछ जलता हुआ सा ' छुआ है<br>लेकिन मैं जानता हूँ कि जो कुछ हुआ है<br>नींद में हुआ है<br>और तब से आजतक<br>नींद और नींद के बीच का जंगल काटते हुये<br>मैंने कई रातें जागकर गुजा़र दीं हैं<br>हफ्तों पर हफ्ते तह किये हैं<br>अपनी परेशानी के<br>निर्मम अकेले और बेहद अनमने क्षण<br>जिये हैं।<br>और हर बार मुझे लगा है कि कहीं<br>कोई खास फ़र्क़ नहीं है<br>ज़िन्दगी उसी पुराने ढर्रे पर चल रही है<br>जिसके पीछे कोई तर्क नहीं है<br>हाँ ,यह सही है कि इन दिनों<br>कुछ अर्जियाँ मँजूर मंजूर हुई हैं<br>कुछ तबादले हुये हैं<br>कल तक जो थे नहले<br>आज<br>दहले हुये हैं<br>हाँ यह सही है कि<br>मन्त्री जब प्रजा के सामने आता है<br>तो पहले से ज्यादा मुस्कराता है<br>नये-नये वादे करता है<br>और यह सिर्फ़ घास के<br>सामने होने की मजबूरी है<br>वर्ना उस भले मानुस को<br>यह भी पता नहीं कि विधानसभा भवन<br>और अपने निजी बिस्तर के बीच<br>कितने जूतों की दूरी है।<br>हाँ यह सही है कि इन दिनों -चीजों के<br>भाव कुछ चढ़ गये हैं।अखबारों हैं।अख़बारों के<br>शीर्षक दिलचस्प हैं,नये हैं।<br>मन्दी की मार से<br>पट पड़ी हुई चीज़ें ,बाज़ार में<br>सहसा उछल गयीं हैं<br>हाँ यह सही है कि कुर्सियाँ वही हैं<br>सिर्फ टोपियाँ बदल गयी हैं और-<br>सच्चे मतभेद के अभाव में<br>लोग उछल-उछलकर<br>अपनी जगहें बदल रहे हैं<br>चढ़ी हुई नदी में<br>भरी हुई नाव में<br>हर तरफ तरफ़,विरोधी विचारों का<br>दलदल है<br>सतहों पर हलचल है<br>नये-नये नारे हैं<br>भाषण में जोश है<br>पानी ही पानी है<br>पर<br>की<br><br>ड़<br>खामोश ख़ामोश है<br>मैं रोज देखता हूँ कि व्यवस्था की मशीन का<br>एक पुर्जा़ गरम होकर<br>अलग छिटक गया है और<br>ठण्डा होते ही<br>फिर कुर्सी से चिपक गया है<br>उसमें न हया है<br>न दया है<br>नहीं-अपना कोई हमदर्द<br>यहाँ नहीं है। मैंने एक-एक को<br>परख लिया है।<br>मैंने हरेक को आवाज़ दी है<br>हरेक का दरवाजा खटखटाया है<br>मगर बेकार…मैंने बेकार… मैंने जिसकी पूँछ<br>उठायी है उसको मादा<br>पाया है।<br>वे सब के सब तिजोरियों के<br>दुभाषिये हैं।<br>वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं।<br>अध्यापक हैं। नेता हैं। दार्शनिक<br>हैं। हैं । लेखक हैं। कवि हैं। कलाकार हैं।<br>यानी कि-<br>कानून की भाषा बोलता हुआ<br>
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।
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