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<poem>
वे हमें हमारे नग़्मे नहीं गाने देते, रॉब्सन,
ओ नग़्मातराज़ उक़ाब, नीग्रो बिरादर,
वे नहीं चाहते कि हम अपने नग़्मे गाएँ ।

वे डरे हुए हैं, रॉब्सन,
भोर से, और देखने-सुनने से
और छूने से उन्हें डर लगता है
उन्हें मुहब्बत करने से डर लगता है
उन्हें फ़रहाद की तरह मुहब्बत करने से डर लगता है
( तुम्हारे यहाँ भी तो कोई फ़रहाद होगा, रॉब्सन,
उसका नाम क्या है ?)

उन्हें बीज से और मिट्टी से, और
बहते हुए पानी से डर लगता है,
उन्हें दोस्ती के बढ़े हुए हाथ की याद से डर लगता है
जो न कोई रियायत माँगता है,
न कमीशन, न ही ब्याज
जो उनकी पकड़ में परिन्दे की तरह कभी आता नहीं ।

वे डरे हुए हैं, नीग्रो बिरादर,
रॉब्सन, हमारे नग़्मों से उन्हें डर लगता है ।

अक्तूबर १९४९

''' अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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