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वृद्धाश्रम / संतोष अलेक्स

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दो वक्‍त
जबरन प्रार्थना करनी पड़ती है यहाँ

छोटे वृद्धाश्रमों में खुद
अपनाकाम करना पड़ता है
बड़ेमें वर्दीवाले सहायक होते हैं

जन्‍मदिन मनाने आते परिवारवालों में
बेटे और बहुओं को ढूँढते वृद्धों के
मुस्‍कुराते चेहरों में छिपी उदासी को
कैद नहीं कर सकता कोई केमरा

खाते खिलाते
समय बिताकर , फोटो खिंचवाकर
चले जाते मेहमान

दूसरे दिन
ईश्‍वर की प्रशंसा में
थरथरातीआवाज में प्रार्थना कर
अपने- अपने प्‍लेट ले खड़े है पंक्ति में ये वृद्ध  

नाश्‍ता करने पर
फिर वही उदासी वही बेचैनी
हॉल के सन्‍नाटे को
चीरती है किसी की खाँसी, किसी का रूदन  
</poem>
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