भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद शाही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विनोद शाही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
डाल से उड़ जाने के बाद भी
बचा रह जाता है पक्षी
पेड़ में धड़कन की तरह

पूरा पढ़ लेने के बाद भी
पढ़ना होता रहता है
भाषा की धड़कन की तरह

आप चाहें तो इसे
कविता भी कह सकते हैं

डाल पर खिले फूल की सुगन्ध
हवा में तैरती है
पक्षी की स्मृति की तरह

पढ़ी ही नहीं
फिर से लिखी भी जाती है कविता
और पाठक के भीतर से
एक कवि की सुगन्ध आने लगती है

कवि होते ही
पाठक को लगता है
कि वह भी हमेशा से एक कवि था

लगता है पेड़ को
कि वह इसलिए उगा
कि उसके भीतर पनप सके
एक पक्षी की आत्मा
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits