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{{KKRachna
|रचनाकार=विनोद शाही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
स्वर्ग पृथ्वी का यही है
और ये ही नरक भी है
कश्मीर है ये
नरक जैसे कैम्प भी हैं
स्वर्ग अपने कोजते हैं
वे कहीं के भी नहीं हैं
सम्भावनाएँ आदमी की
मुल्क अपना खोजती
विस्थापित हुई हैं
हर जगह से
देवता हैं, दरअसल हैं
पीर हैं, पैगम्बर बड़े हैं
वे सभी हैं, बेशक सभी हैं
क्योंकि अभी तक आदमी
आया नहीं है
कश्मीर के सब देवता
पैगम्बरों को साथ लेकर
उजड़ जाएँ और कैम्पों में रहें
तो ही मुलक में आदमी के
बसने की बारी आएगी
आदमी होगे जहाँ
वे ही असल में स्वर्ग होंगे
</poem>
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स्वर्ग पृथ्वी का यही है
और ये ही नरक भी है
कश्मीर है ये
नरक जैसे कैम्प भी हैं
स्वर्ग अपने कोजते हैं
वे कहीं के भी नहीं हैं
सम्भावनाएँ आदमी की
मुल्क अपना खोजती
विस्थापित हुई हैं
हर जगह से
देवता हैं, दरअसल हैं
पीर हैं, पैगम्बर बड़े हैं
वे सभी हैं, बेशक सभी हैं
क्योंकि अभी तक आदमी
आया नहीं है
कश्मीर के सब देवता
पैगम्बरों को साथ लेकर
उजड़ जाएँ और कैम्पों में रहें
तो ही मुलक में आदमी के
बसने की बारी आएगी
आदमी होगे जहाँ
वे ही असल में स्वर्ग होंगे
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