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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
विराजा
गादी पर महाराज विराजा
गादी पर महाराज ।
चन्दन लेपा आजू-बाजू
माथे पर त्रिपुण्ड ।
भगत खड़े कर जोड़े ऐसे
ज्यों भेड़ों के झुण्ड ।
थर्राती
सरकार लगा दे
कहीं एक आवाज़ ।
नश्वर है संसार, सुनो सब
ज़रा लगाकर कान ।
जो भी पास तुम्हारे भक्तों
करके जाना दान ।
पुण्योदय से
अवसर आया
लाभ उठाना आज ।
हरे मुरारी दया करेंगे
और हरेंगें पीर ।
मेवा-मिश्री छोड़ हमें तू
पीना सादा नीर ।
आज ज़रा सा
त्याग करे तो
पाएगा कल ताज ।
सोना दे जा, चाँदी दे जा,
दे जा नगदी साथ ।
मूढ़, निकम्मे, पापी साले !
धर गद्दी पर माथ ।
चिन्ता छोड़
गगन में उड़ जा !
जैसे उड़ता बाज़ ।
</poem>
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|संग्रह=
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<poem>
विराजा
गादी पर महाराज विराजा
गादी पर महाराज ।
चन्दन लेपा आजू-बाजू
माथे पर त्रिपुण्ड ।
भगत खड़े कर जोड़े ऐसे
ज्यों भेड़ों के झुण्ड ।
थर्राती
सरकार लगा दे
कहीं एक आवाज़ ।
नश्वर है संसार, सुनो सब
ज़रा लगाकर कान ।
जो भी पास तुम्हारे भक्तों
करके जाना दान ।
पुण्योदय से
अवसर आया
लाभ उठाना आज ।
हरे मुरारी दया करेंगे
और हरेंगें पीर ।
मेवा-मिश्री छोड़ हमें तू
पीना सादा नीर ।
आज ज़रा सा
त्याग करे तो
पाएगा कल ताज ।
सोना दे जा, चाँदी दे जा,
दे जा नगदी साथ ।
मूढ़, निकम्मे, पापी साले !
धर गद्दी पर माथ ।
चिन्ता छोड़
गगन में उड़ जा !
जैसे उड़ता बाज़ ।
</poem>