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भीड़ से सराबोर होने का उपहार सभी के हिस्से नहीं आता । भीड़ का आनन्दोपभोग करना एक कला है, और सिर्फ़ वहीं व्यक्ति मानव प्रजाति का उपयोग, जोशे-जवानी के साथ, थिरकने-रँगरलियाँ मनाने में कर सकता है, किसी परी ने जिसके कान में मन्त्र फूँका हो, जब वह पालने में था : छद्मवेशों और मुखौटों में रुचि, घर से सख़्त नफ़रत, और आवारगी का नशा ।
भीड़ भड़क्का, एकान्त : एक जैसे, परस्पर अदला बदली करते शब्द सक्रिय और उर्वर कवि के लिए । वह व्यक्ति, जो अपने एकान्त को आबद्ध नहीं कर सकता, किसी हंगामा-ख़ेज़ भीड़ में न एकाकी हो पाएगा, न इसमें सक्षम ही होगा ।
कवि इच्छानुसार अपने आप में रहने और कोई अन्य होने के अतुलनीय विशेषाधिकार का आनन्द लेता है । एक शरीर की तलाश करती हुई भटकती आत्माओं की भाँति, इच्छानुसार किसी के भी या हर किसी के व्यक्तित्व में प्रविष्ट हो सकता है । सिर्फ़ उसी के लिए सब कुछ उद्घाटित है । यदि कुछ जगहें उसे अगम्य प्रतीत होती हैं; इसलिए कि उसकी दृष्टि में, वे दर्शनीय नहीं ।
निस्संग, सहृदय पादचारी इस सर्वव्यापी अन्तरंगता से एक विलक्षण उत्तेजन प्राप्त करता है । वह, जो सहज भाव से स्वयं को भीड़ के अनुकूल बना सकता है, विह्वल कर देने वाले सुखों से अवगत है, और अहंमन्य व्यक्ति, किसी सन्दूक की भाँति बन्द रहता है, और मोलस्क की भाँति भीतर से भीतर करवटें बदलता रहनेवाला क़ातिल आदमी उनसे सदा वंचित रहेगा।... वह अपने स्वयं के हित सादी वृत्तियाँ, सारी ख़ुशियाँ और सारी कमबख़्ती, जो परिस्थितियाँ उसके सामने पेश करती हैं, अंगीकार करता है ।
लोग जिसे प्रेम कहकर पुकारते हैं; बड़ी छोटी चीज़ है, बहुत ही सीमित, बहुत ही क्षीण और मन्द — इस अनिर्वचनीय व्यभिचार, आत्मा की इस अनिर्वचनीय वेश्यावृत्ति की तुलना में, जो स्वयमेव वार देती है पूरी तरह : कविता, प्रेम, अप्रत्याशित रूप से, गुज़र रहे अजनबी पर ।
दुनिया के सौभाग्यशाली लोगों को, यदा-कदा, यह दिखाना अच्छा है ( भले महज़ पल-भर को, उनके जड़ अहंकार का पानी उतारने के लिए) कि ख़ुशियाँ हैं, उनकी खुशियों से श्रेष्ठतर, विपुल और विलक्षण । धरती के छोरों पर निर्वासित —उपनिवेश कायम करने वाले लोगों को हाँकने वाले मिशनरी-पुरोहित निस्सन्देह इनमें से कुछ निगूढ़ उत्तेजनाओं से अवगत हैं, और विपुल कुल (जो उनकी प्रतिभा ने स्वयं के लिए सृजा है) के अंक में अवस्थित हैं, कभी-कभार हँसते होंगे — उन पर जो उनके अशान्त भाग्य और इतनी शुद्धता वाले उनके जीवन पर तरस खाते हैं ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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भीड़ से सराबोर होने का उपहार सभी के हिस्से नहीं आता । भीड़ का आनन्दोपभोग करना एक कला है, और सिर्फ़ वहीं व्यक्ति मानव प्रजाति का उपयोग, जोशे-जवानी के साथ, थिरकने-रँगरलियाँ मनाने में कर सकता है, किसी परी ने जिसके कान में मन्त्र फूँका हो, जब वह पालने में था : छद्मवेशों और मुखौटों में रुचि, घर से सख़्त नफ़रत, और आवारगी का नशा ।
भीड़ भड़क्का, एकान्त : एक जैसे, परस्पर अदला बदली करते शब्द सक्रिय और उर्वर कवि के लिए । वह व्यक्ति, जो अपने एकान्त को आबद्ध नहीं कर सकता, किसी हंगामा-ख़ेज़ भीड़ में न एकाकी हो पाएगा, न इसमें सक्षम ही होगा ।
कवि इच्छानुसार अपने आप में रहने और कोई अन्य होने के अतुलनीय विशेषाधिकार का आनन्द लेता है । एक शरीर की तलाश करती हुई भटकती आत्माओं की भाँति, इच्छानुसार किसी के भी या हर किसी के व्यक्तित्व में प्रविष्ट हो सकता है । सिर्फ़ उसी के लिए सब कुछ उद्घाटित है । यदि कुछ जगहें उसे अगम्य प्रतीत होती हैं; इसलिए कि उसकी दृष्टि में, वे दर्शनीय नहीं ।
निस्संग, सहृदय पादचारी इस सर्वव्यापी अन्तरंगता से एक विलक्षण उत्तेजन प्राप्त करता है । वह, जो सहज भाव से स्वयं को भीड़ के अनुकूल बना सकता है, विह्वल कर देने वाले सुखों से अवगत है, और अहंमन्य व्यक्ति, किसी सन्दूक की भाँति बन्द रहता है, और मोलस्क की भाँति भीतर से भीतर करवटें बदलता रहनेवाला क़ातिल आदमी उनसे सदा वंचित रहेगा।... वह अपने स्वयं के हित सादी वृत्तियाँ, सारी ख़ुशियाँ और सारी कमबख़्ती, जो परिस्थितियाँ उसके सामने पेश करती हैं, अंगीकार करता है ।
लोग जिसे प्रेम कहकर पुकारते हैं; बड़ी छोटी चीज़ है, बहुत ही सीमित, बहुत ही क्षीण और मन्द — इस अनिर्वचनीय व्यभिचार, आत्मा की इस अनिर्वचनीय वेश्यावृत्ति की तुलना में, जो स्वयमेव वार देती है पूरी तरह : कविता, प्रेम, अप्रत्याशित रूप से, गुज़र रहे अजनबी पर ।
दुनिया के सौभाग्यशाली लोगों को, यदा-कदा, यह दिखाना अच्छा है ( भले महज़ पल-भर को, उनके जड़ अहंकार का पानी उतारने के लिए) कि ख़ुशियाँ हैं, उनकी खुशियों से श्रेष्ठतर, विपुल और विलक्षण । धरती के छोरों पर निर्वासित —उपनिवेश कायम करने वाले लोगों को हाँकने वाले मिशनरी-पुरोहित निस्सन्देह इनमें से कुछ निगूढ़ उत्तेजनाओं से अवगत हैं, और विपुल कुल (जो उनकी प्रतिभा ने स्वयं के लिए सृजा है) के अंक में अवस्थित हैं, कभी-कभार हँसते होंगे — उन पर जो उनके अशान्त भाग्य और इतनी शुद्धता वाले उनके जीवन पर तरस खाते हैं ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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