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|रचनाकार=बाद्लेयर
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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}}
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<poem>
उस भयानक क्रुद्ध आसमान से,
तुम्हारी नियति जैसे प्रताड़ित
कौन से विचार अवतरित होते हैं
तुम्हारी छूँछी आत्मा में ?
उत्तर दो, अविश्वासी !
अत्यन्त लोभ से खींच ले जाया गया
गूढ़ और अनिश्चय की ओर मैं,
लातिनी-स्वर्ग से निर्वासित ओविद’<ref>वर्जिल के बाद रोम का महानतम कवि ओविद (ज. 43 ई.पू.) रोम के भद्रलोक के बीच पला-बढ़ा था और अपनी शृंगारिक कविताओं के लिए समाज में अत्यन्त लोकप्रिय था। किन्तु किसी अज्ञात-अस्पष्ट कारण से रूष्ट होकर सम्राट ऑगुस्तुस सीज़र ने 50 वर्ष की उम्र में उसे एक वीरान द्वीप में निर्वासित कर दिया। वहाँ उसने ‘मेटामार्फोसिस’ और ‘कास्ती’ नाम के दो अमर महाकाव्यों की रचना की। वहीं 60 वर्ष की उम्र में परिवार, देश-समाज से दूर उसकी मृत्यु हुई।</ref> की भाँति
बिसूरूँगा नहीं मैं।
सागर तटों की भाँति विदीर्ण आसमानों
तुममें मेरा गर्व स्वयं का अवलोकन करता है
तुम्हारे विस्तीर्ण शोक-विषण्ण बादल
मेरे स्वप्नों के शववाहन हैं
और तुम्हारी प्रकाश-किरणें नरक का प्रतिबिम्ब हैं
जहाँ मेरा हृदय घर जैसा अनुभव करता है ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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उस भयानक क्रुद्ध आसमान से,
तुम्हारी नियति जैसे प्रताड़ित
कौन से विचार अवतरित होते हैं
तुम्हारी छूँछी आत्मा में ?
उत्तर दो, अविश्वासी !
अत्यन्त लोभ से खींच ले जाया गया
गूढ़ और अनिश्चय की ओर मैं,
लातिनी-स्वर्ग से निर्वासित ओविद’<ref>वर्जिल के बाद रोम का महानतम कवि ओविद (ज. 43 ई.पू.) रोम के भद्रलोक के बीच पला-बढ़ा था और अपनी शृंगारिक कविताओं के लिए समाज में अत्यन्त लोकप्रिय था। किन्तु किसी अज्ञात-अस्पष्ट कारण से रूष्ट होकर सम्राट ऑगुस्तुस सीज़र ने 50 वर्ष की उम्र में उसे एक वीरान द्वीप में निर्वासित कर दिया। वहाँ उसने ‘मेटामार्फोसिस’ और ‘कास्ती’ नाम के दो अमर महाकाव्यों की रचना की। वहीं 60 वर्ष की उम्र में परिवार, देश-समाज से दूर उसकी मृत्यु हुई।</ref> की भाँति
बिसूरूँगा नहीं मैं।
सागर तटों की भाँति विदीर्ण आसमानों
तुममें मेरा गर्व स्वयं का अवलोकन करता है
तुम्हारे विस्तीर्ण शोक-विषण्ण बादल
मेरे स्वप्नों के शववाहन हैं
और तुम्हारी प्रकाश-किरणें नरक का प्रतिबिम्ब हैं
जहाँ मेरा हृदय घर जैसा अनुभव करता है ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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