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|रचनाकार=बाद्लेयर
|अनुवादक=सुरेश सलिल
|संग्रह=
}}
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'''इस कविता के अँग्रेज़ी अनुवाद का शीर्षक ‘कॅरेस्पांडेंसेज़’ (Correspondences) है। इसे फ्राँसीसी प्रतीकवादी कविता का प्रस्थान बिन्दु माना जाता है।'''
प्रकृति एक मन्दिर है, जिसके जीवित खम्भे
भरमे शब्दों को उगने का यदा-कदा अवसर देते हैं
मानव उसे पार करता है संकेतारण्यों से होकर
जो अपनी भीतर की आँखों से उसपर चौकस रहते हैं
जैसे कहीं दूर से आकर किसी निगूढ़ गहन संगति में;
जिसका विस्तार रात्रि-सा, स्पष्टता-सा;
गहरी अनुगूँजें मिलती हैं,
उसी भाँति अनुकूलित रहते गन्धराग, स्वर, वर्ण परस्पर ।
ऐसे भी हैं गन्धराग, जो निर्मल हैं शिशु-देह सरीखे
शहनाई से मृदुल, हरित शाद्वल प्रान्तर से,
और दूसरे विकृत-प्रदूषित, विजयोन्मत्त, समृद्धि से लसे,
अम्बर, मृगमद, अगरू और लोबान-सरीखी
गणनातीत वस्तुओं के विसरण के स्वामी
आत्मिक-सांज्ञिक समाधियों की महिमा गाते ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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'''इस कविता के अँग्रेज़ी अनुवाद का शीर्षक ‘कॅरेस्पांडेंसेज़’ (Correspondences) है। इसे फ्राँसीसी प्रतीकवादी कविता का प्रस्थान बिन्दु माना जाता है।'''
प्रकृति एक मन्दिर है, जिसके जीवित खम्भे
भरमे शब्दों को उगने का यदा-कदा अवसर देते हैं
मानव उसे पार करता है संकेतारण्यों से होकर
जो अपनी भीतर की आँखों से उसपर चौकस रहते हैं
जैसे कहीं दूर से आकर किसी निगूढ़ गहन संगति में;
जिसका विस्तार रात्रि-सा, स्पष्टता-सा;
गहरी अनुगूँजें मिलती हैं,
उसी भाँति अनुकूलित रहते गन्धराग, स्वर, वर्ण परस्पर ।
ऐसे भी हैं गन्धराग, जो निर्मल हैं शिशु-देह सरीखे
शहनाई से मृदुल, हरित शाद्वल प्रान्तर से,
और दूसरे विकृत-प्रदूषित, विजयोन्मत्त, समृद्धि से लसे,
अम्बर, मृगमद, अगरू और लोबान-सरीखी
गणनातीत वस्तुओं के विसरण के स्वामी
आत्मिक-सांज्ञिक समाधियों की महिमा गाते ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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