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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मैं पड़ोसी हूँ । मैंने उसके ख़िलाफ़ जासूसी की है ।
अपने भवन में हम
निन्दक नहीं चाहते ।
जब हमने स्वस्तिका वाले परचम फ़हराए
उसने नहीं फ़हराया
जब हमने ऐसा करने को कहा
उसने हमसे पूछा, कि हमारे कमरे में
जिसमें हम चार बच्चों के साथ रहते हैं
परचम फ़हराने के लिए जगह भी है ?
जब हमने कहा कि हमें फिर से अच्छे दिनों की आस है
वह हंसने लगा ।
सीढ़ियों पर उसे जो पीटा गया
वो हमें पसन्द नहीं आया. उन्होंने उसके कपड़े फाड़ डाले ।
इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. इतने कपड़े तो
हममें से किसी के पास नहीं होते ।
लेकिन कम से कम अब वह ग़ायब है और पूरे भवन में चैन है ।
हम वैसे ही परेशान हैं, चुनाँचे
कम से कम चैन तो ज़रूरी है ।
हाँ, हम देख रहे हैं कि कुछ लोग
हमसे मिलने पर नज़र चुराते हैं । लेकिन
जो लोग उसे ले गए, वे कहते हैं
हमने ठीक ही किया ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
मैं पड़ोसी हूँ । मैंने उसके ख़िलाफ़ जासूसी की है ।
अपने भवन में हम
निन्दक नहीं चाहते ।
जब हमने स्वस्तिका वाले परचम फ़हराए
उसने नहीं फ़हराया
जब हमने ऐसा करने को कहा
उसने हमसे पूछा, कि हमारे कमरे में
जिसमें हम चार बच्चों के साथ रहते हैं
परचम फ़हराने के लिए जगह भी है ?
जब हमने कहा कि हमें फिर से अच्छे दिनों की आस है
वह हंसने लगा ।
सीढ़ियों पर उसे जो पीटा गया
वो हमें पसन्द नहीं आया. उन्होंने उसके कपड़े फाड़ डाले ।
इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. इतने कपड़े तो
हममें से किसी के पास नहीं होते ।
लेकिन कम से कम अब वह ग़ायब है और पूरे भवन में चैन है ।
हम वैसे ही परेशान हैं, चुनाँचे
कम से कम चैन तो ज़रूरी है ।
हाँ, हम देख रहे हैं कि कुछ लोग
हमसे मिलने पर नज़र चुराते हैं । लेकिन
जो लोग उसे ले गए, वे कहते हैं
हमने ठीक ही किया ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
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