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|संग्रह=सौन्दर्य लहरी / आदि शंकराचार्य
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<poem>
गुरुत्वं विस्तारं क्षितिधरपतिः पार्वति निजा -
न्नितम्बादाच्छिद्य त्वयिहरणरूपेणनिदधे ।
अतस्ते विस्तीर्णो गुरुरयमशेषां वसुमतीं
नितम्ब प्राग्भारः स्थगयतिलघुत्वंनयति च ॥ ८१॥
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