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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
अेक समियौ है
थारी प्रीत सूं ई जूंनौ
जिकौ परापरी बण परौ
म्हारी खांक रै परसेवै परगटै
म्हैं उणनै कठै लुकावूं
है तौ घणौ ई कांम रौ।

इण टाळ अपांरी आयस रै इतियास में
अणखतायोड़ौ
अेक छिण है
अेक आकळ उडीक में अबोलौ
अरथै आवण नै उमायौ
उणनै उमेद है
के वौ जमा पाड़ीजैला कदैई
किणी हरख रै नांवै
इण आस में
के उणसूं नीं पूछीजैला
उणरै व्हैण रा सबूत
ओळख रा वै सीगा अबै
उणरै चेतै नीं रह्या
उणरै पासै
लेय-देय अेक उडीक है
म्हैं उण छिन्याक-सा छिण नै
काळ सूं उचकाय
उण निमेख री गुंडी बणावणी चावूं
हिवड़ै रौ फड़कौ
अटकावण सारू
म्हारी सायधण
म्हनै फूल मत दे
बण आवै तौ टांक दे
आपरी सींवणी
अर हाथ री खामचाई सूं
उचकायोड़ा निमेख नै
म्हारी छाती
सुथराई सूं।
</poem>
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