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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
चितारियां बिना ई अे गैली राधा,
ओळूं-ओळूं सिध जावै?

भळहळतै भांण रै चांनणै चांदौ पळकै। जिणसूं इज अपांरी इळा चांदणी रळकै। चांदणी रै निवास कुमदणी विगसै। पुुहुप विगसियां पराग निकसै। भंवरौ गुणमुणावतौ उछाह सूं रांचै। किणरी आस अर किणरै गाजै-बाजै। दूजै नखतर-ग्रहां सूं कोनी आवै कोई सपनौ वागौ ठसाय। वौ तो अठैरौ इज व्है अठैरी किणी आंख सारू। औसर पाय उतरै आछ पगां। पाधरो पूगै ठाळ नै आपरी जगां।

अठी-उठी झांकळयां नीं खाय
ओळूं रौ आवणौ इण जात सज आवै।
</poem>
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