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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
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<poem>
कहने को तो चन्दा - तारों तक जा पहुँचे हम
आदम की औलाद / बाप से भी ज़्यादा आदम !
कैसा किधर बिकास
ग्यान का बेड़ा गरक हुआ
ऊपर - ऊपर सुरग
नाक के नीचे नरक हुआ,
दुनिया - भर के तौला - मौला / अपने तौला कम !
धरम - करम भरपूर
दिखावा इतना सगा हुआ
माइक बोलै सबद
कबीरा सोचै जगा हुआ,
बँधी हवा में हवा / यही तो गुब्बारी दमख़म !
बड़े - बड़े जाँबाज़ों के
अब इतने सुद्ध हिए
अमन - चैन के नाम
दस्तख़त करके जुद्ध किए,
हरदम खाँस - मठार / भले ही आती हो बलगम !
–
20 दिसम्बर 1975
</poem>
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कहने को तो चन्दा - तारों तक जा पहुँचे हम
आदम की औलाद / बाप से भी ज़्यादा आदम !
कैसा किधर बिकास
ग्यान का बेड़ा गरक हुआ
ऊपर - ऊपर सुरग
नाक के नीचे नरक हुआ,
दुनिया - भर के तौला - मौला / अपने तौला कम !
धरम - करम भरपूर
दिखावा इतना सगा हुआ
माइक बोलै सबद
कबीरा सोचै जगा हुआ,
बँधी हवा में हवा / यही तो गुब्बारी दमख़म !
बड़े - बड़े जाँबाज़ों के
अब इतने सुद्ध हिए
अमन - चैन के नाम
दस्तख़त करके जुद्ध किए,
हरदम खाँस - मठार / भले ही आती हो बलगम !
–
20 दिसम्बर 1975
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