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घुलता दिन / शशिकान्त गीते

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|संग्रह=मृगजल के गुंतारे / शशिकान्त गीते
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<poem>
थाम धूप की मरियल लाठी
कुबड़ा - कुबड़ा चलता दिन ।
कुहरिल तम के सस्ते - सस्ते
दयाभाव पर पलता दिन ।

नए - नए इस मौसम के हैं
गर्म - गर्म जो सर्द इरादे
गली - गली में बाँट रहे हैं
दो हाथों से सौ - सौ वादे
टक - टक देखे, हाथ पसारे
आँखें भी न मलता दिन ।

समय, समय पर भी कुछ ऐसा
असमय समय बुढा़पा काटे
सूरज से मिल मरी हवा भी
ख़ूब चुभोए बोथे काँटे
कितनी मीठी पिछली यादें
सोच- सोच कर घुलता दिन ।
</poem>
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