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|रचनाकार= लिअनीद मर्तीनफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
अपनी पराजयों-विजयों का पूरा हिसाब कर
किसने दी है तुम्‍हें यह सलाह
कि अब तो किवाड़ बन्द कर
चैन से बैठ सकते हो भीतर ।
विश्‍वास करो - ऐसा होगा नहीं ।

नींद नहीं आती ?
पर तुम अकेले नहीं ।
उसे भी नींद नहीं आती पूरी तरह ।
भरी होती है वह गाड़ियों, शो-रूमों ओर इश्तिहारों से,
भरी होती है मनुष्‍यों से
हँसती है पर बेवज़ह नहीं
सो नहीं पाती
वह यानी हमारी राजधानी ।

किसी को नींद नहीं आती इस अन्धकार में =-
बेचैन है बॉयलरों में तारकोल, बोतलों में शराब,
नींद नहीं आती किसी को --
चाहे कोई गाड़ी में बैठा हो या हवाई जहाज़ में ।
आग को भी राख में नींद नहीं ।
एक नया करिश्‍मा
पूरा होने को है हमारी इस पृथ्‍वी में ।

कैसा होगा यह करिश्‍मा --
इसका अनुमान करने का
पूरा अधिकार है तुम्‍हें
शायद इसलिए नींद नहीं आती तुम्‍हें
रात-रात भर ।

'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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