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मेरे जीवन की शान्त पत्तियों के ऊपर ?
किसने दिखाया तुम्हें रास्ता ? किस पुष्प,
कौनसी चट्टान ? किस धुन्ध ने दिखाया मेरा निवास स्थान ?
चूँकि पृथ्वी हिली — हाँ, हिली, उस भयावह रात्रि को;
तब भोर ने भर दिया सभी पात्रों को अपनी मदिरा से;
दैवीय सूर्य ने घोषित किया स्वयं को;
जबकि मेरे अन्तर में एक हिंसक प्रेम लगाता रहा
चक्कर मेरे चारों ओर — अपने काँटों और कृपाण से मुझे भेदने तक,
काटी एक शुष्क राह मेरे हृदय से होकर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''
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