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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

ना दिल से आह ना लब सदा निकलती है<br>
मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है<br><br>
सितम तो ये है अहदे सितम के जाते ही<br>
तमाम खल्क मेरी हमनवां निकलती है<br><br>
विसाले बहर की हसरत में ज़ूए कम कममायः<br>
कभी कभी किसी सहरा में जा निकलती है<br><br>
मैं क्या करूं मेरे कातिल ना चाहने पर भी<br>
तेरे लिये मेरे दिल से दुआ निकलती है<br><br>
वो ज़िन्दगी हो कि दुनिया "फ़राज़" क्या कीजे<br>
कि जिससे इश्क करो बेवफ़ा निकलती है<br><br>
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