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|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
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<poem>
‘अगली बार
हमारा ख़ेमा कहीं
सागर-तट पर गड़ना चाहिए’ —
हमारा सबसे कमउम्र कामरेड
कहता है —‘अब हमें
दूसरे छोर तक चलना चाहिए ।’

हमारा सबसे कमउम्र कामरेड
उन्नत हिमशिखरों को निहारता
घाटी में खो-सी गई
सर्पिल राहों को टटोलता
सागर के अनन्त विस्तार
और रहस्यमय गहराइयों के बारे में
सोच रहा है
और अपनी पीढ़ी के प्रति
नया भरोसा पैदा कर रहा है ।

जो ऊँचाइयाँ ही नहीं जीतेंगे
नापेंगे विस्तार भी
उतरेंगे तल तक
वे जीतेंगे
हारी हुई लड़ाइयाँ
वे ही चुकाएँगे
पूर्वजों की हार का बदला ।
</poem>
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