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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|अनुवादक=सुलोचना वर्मा
|संग्रह=
}}
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<poem>
भक्ति है आती रिक्तहस्त प्रसन्नवदन
अतिभक्ति कहे, देखूँ कितना मिलता है धन
भक्ति कहे, मन में है, नहीं दिखाने की औक़ात
अतिभक्ति कहे, मुझे तो मिलता हाथोंहाथ ।
'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
</poem>
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भक्ति है आती रिक्तहस्त प्रसन्नवदन
अतिभक्ति कहे, देखूँ कितना मिलता है धन
भक्ति कहे, मन में है, नहीं दिखाने की औक़ात
अतिभक्ति कहे, मुझे तो मिलता हाथोंहाथ ।
'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
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