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Kavita Kosh से
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
हिम के फ़ायों से हलके होंगे, सितारों से उड़ेंगे जैसे बाक़ायदा।
मार्च 1914, पीटर्सबर्ग