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{{KKRachna
|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=रुस्तम सिंह
|संग्रह=
}}
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<poem>
सुबह-सुबह छोटी सी लड़की
मेरे घर
दूध का भरा लोटा देने
आती है
मैं दूध को ख़ाली बर्तन में उड़ेलता हूँ
देखता हूँ धीरे-धीरे हिल रहा है दूध
मुझे मेरे ज़िन्दा होने का
पता चलता है
अब मैं सारा दिन
इस्तेमाल करता रहूँगा बर्तन
और उसके ख़ाली होने तक जीता रहूँगा ।
</poem>
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|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=रुस्तम सिंह
|संग्रह=
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सुबह-सुबह छोटी सी लड़की
मेरे घर
दूध का भरा लोटा देने
आती है
मैं दूध को ख़ाली बर्तन में उड़ेलता हूँ
देखता हूँ धीरे-धीरे हिल रहा है दूध
मुझे मेरे ज़िन्दा होने का
पता चलता है
अब मैं सारा दिन
इस्तेमाल करता रहूँगा बर्तन
और उसके ख़ाली होने तक जीता रहूँगा ।
</poem>