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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
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<poem>
चीड़ के पेड़ों के नशे में चूर, और दीर्घ चुम्बनों के,
गर्मियों की तरह मैं खेता हूं गुलाबों की तेज़ पालों को
विरल दिन की मृत्यु की तरफ झुके हुए
धँसे हुए मेरी ठोस समुद्री विक्षिप्तता में,

निष्प्रभ और अपने क्षुधातुर जल पर टूटता हुआ
मैं यात्रा करता जाता हूँ निर्वसन जलवायु की खट्टी महक में
मैं अब भी पहने हूँ सलेटी और तिक्त आवाज़े
और परित्यक्त बौछार का उदास ताज़

अनुभूतियों से कड़ा होकर, मैं जाता हूं अपनी एक लहर पर सवार
चान्द - सा, सूरज - सा, तपता हुआ और ठण्डा, सब कुछ एक साथ ।
शीतल नितम्बों की तरह धवल और मधुर
भाग्यशाली द्वीपों के गले में सुकून पाया हुआ ।

नम रात को चुम्बनों से काँपती है मेरी पोशाक
विद्युत धाराओं से पागलपन तक आवेशित
बहादुरी के साथ बंटा हुआ
सपनों और नशीले गुलाबों में, जो मुझ पर रियाज़ कर रहे हैं

प्रवाह के उल्टी तरफ़, बाहरी लहरों के बीचोबीच
तुम्हारी समान्तर देह मेरी बाँहों में समर्पित हो जाती है
एक मछली की तरह मेरी आत्मा में अनन्त तक बंधी हुई
चपल और मन्थर आकाश तले की ऊर्जा में ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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