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धूप नेउठते बगूलों-के इधर ही रुख मोड़ेखींचकरपछवा हवा की-डोर, तीखे बाण छोड़े।घास हैझुलसी हुई-सीऔर नभ में भी जलन हैतप रहाअंगार जैसाधरा कानंगा बदन हैजल हुआ तेजाब तीखाधूल केचलते हथौड़े।नई डामर-की सड़क भीअब भाड़-सीतपने लगीछाँव कीकिलकारियाँ भीरह गईजैसे ठगी,आग नेचुपचाप आकरपीठ पर जड़ दिए कोड़े।-0-
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