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भेड़िए
बैठे हुए हैं
मेमनों का रूप धारे।
छोड़ दें
किसके भरोसे
मृगशावक भावनाएँ
साँझ होने पर घर को
लौटकर आएँ न आएँ,
बन्द करें
कैसे भला हम
इस घर के
द्वार सारे ।
 
लिखे हुए हैं
दोष जितने
इस अकेले नाम पर,
हम अभी तक जी रहे हैं
उन्हीं के
परिणाम पर,
दे सकेंगे
साथ कैसे
टूटते
घायल किनारे।
-0-
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