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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
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}}
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<poem>
चुन्नू चींटी चली घूमने ऊँचे-ऊँचे पर्वत।
उसने पहले की तैयारी, लायी बैग सयानी,
उसमें उसने रक्खे कपड़े, चीनी, चावल, पानी।
सैर-सपाटे से पहले की जमकर उसने मेहनत।
पैदल-पैदल निकल पड़ी फिर नन्ही चुन्नू घर से,
कुछ चलती कुछ सुस्ताती वो पहुँची दूर शहर से,
पर्वत चढ़ना शुरू किया फिर पीकर मीठा शरबत।
मिले राह में बंदर, भालू उनको मित्र बनाया,
चुन्नू का व्यवहार वहाँ पर सबके मन को भाया,
सब मित्रों का साथ निभाना थी चुन्नू की आदत।
रस्ते में इक नदी मिली तो चुन्नू कुछ घबरायी,
पर बंदर ने उसे पीठ पर नदी पार करवाई,
जब मित्रों का साथ मिल गया भागी सभी मुसीबत।
चलते-गिरते, पुन: सँभलते फिर से पर्वत चढ़ते,
पहुँचे पर्वत की चोटी पर तीनों गाते-हँसते,
पा जाता है मंजिल अपनी जो रखता है हिम्मत।
</poem>
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चुन्नू चींटी चली घूमने ऊँचे-ऊँचे पर्वत।
उसने पहले की तैयारी, लायी बैग सयानी,
उसमें उसने रक्खे कपड़े, चीनी, चावल, पानी।
सैर-सपाटे से पहले की जमकर उसने मेहनत।
पैदल-पैदल निकल पड़ी फिर नन्ही चुन्नू घर से,
कुछ चलती कुछ सुस्ताती वो पहुँची दूर शहर से,
पर्वत चढ़ना शुरू किया फिर पीकर मीठा शरबत।
मिले राह में बंदर, भालू उनको मित्र बनाया,
चुन्नू का व्यवहार वहाँ पर सबके मन को भाया,
सब मित्रों का साथ निभाना थी चुन्नू की आदत।
रस्ते में इक नदी मिली तो चुन्नू कुछ घबरायी,
पर बंदर ने उसे पीठ पर नदी पार करवाई,
जब मित्रों का साथ मिल गया भागी सभी मुसीबत।
चलते-गिरते, पुन: सँभलते फिर से पर्वत चढ़ते,
पहुँचे पर्वत की चोटी पर तीनों गाते-हँसते,
पा जाता है मंजिल अपनी जो रखता है हिम्मत।
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