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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जंगल में सबने मिलजुल कर खूब मनाई होली।
चीता, भालू, मोर, हिरन, हाथी बिल्ली औ बंदर,
हुए इकट्ठा सुबह-सुबह ही सभी शेर के घर पर।
मोर-मोरनी रँग ले आये और हिरन पिचकारी,
हाथी ने रँग भरा सूंड में तेज धार दे मारी।
लगी झूमने मस्ती में तब जानवरों की टोली।
सबके मुँह पर रंग लग गया बनी एक-सी सूरत,
मित्र बन गये सब आपस में भूल गये वो नफरत।
गुझिया, लड्डू, रसगुल्ले की थाली बंदर लाया,
कोयल ने भी राग छेड़कर मीठा गान सुनाया।
बोल रहे थे सब आपस में प्रेम प्यार की बोली।
</poem>
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जंगल में सबने मिलजुल कर खूब मनाई होली।
चीता, भालू, मोर, हिरन, हाथी बिल्ली औ बंदर,
हुए इकट्ठा सुबह-सुबह ही सभी शेर के घर पर।
मोर-मोरनी रँग ले आये और हिरन पिचकारी,
हाथी ने रँग भरा सूंड में तेज धार दे मारी।
लगी झूमने मस्ती में तब जानवरों की टोली।
सबके मुँह पर रंग लग गया बनी एक-सी सूरत,
मित्र बन गये सब आपस में भूल गये वो नफरत।
गुझिया, लड्डू, रसगुल्ले की थाली बंदर लाया,
कोयल ने भी राग छेड़कर मीठा गान सुनाया।
बोल रहे थे सब आपस में प्रेम प्यार की बोली।
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