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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
छोटे-छोटे नाम
नाम के आखर बड़े-बड़े
आदमक़द चेहरे
चौराहों पर आ हुए खड़े !

रंग-ढंग कैसा
कैसी मुस्कानें हरी-भरी
आँख मारती
आँखों बैठी बेपर लालपरी,

और नाक पर बैठे
उठनेवाले हाथ, जुड़े !

डील-डौल ऐसा
अन्धों की आँखें देख फटें
फ़ौलादी टाँगों के बूते
बरसों नहीं हटें,

विज्ञापन हैं निरे
कहें क्या इनसे कौन भिड़े !

16-11-1976
</poem>
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