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{{KKRachna
|रचनाकार=विलिमीर ख़्लेबनिकफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}[[Category:रूसी भाषा]]
<poem>
मुझे मालूम नहीं, पृथ्वी घूमती है या नहीं
यह इस पर निर्भर करता है कि शब्द
पंक्ति में ठीक बैठ रहा है या नहीं ।
मुझे मालूम नहीं, मेरे दादा या दादी कभी बन्दर रहे या नहीं
इसलिए कि मुझे मालूम नहीं
मैं खट्टी चीज़ पसन्द करता हूँ या मीठी ।
पर मैं जानता हूँ कि मैं उबलना चाहता हूँ
चाहता हूँ कि कोई साझा कम्पन मिला दे
सूर्य को मेरे हाथ की नसों से ।
चाहता हूँ कि तारे की किरणें चूमें
मेरी आँख की किरणों को
जैसे एक हिरण चूमता है दूसरे को
(ओह, कितनी सुन्दर आँखें पाई हैं हिरणों ने !)
चाहता हूँ कि जब काँपने लगूँ
यह साझा कम्पन
ब्रह्माण्ड के कम्पन से मिल जाए ।
चाहता हूँ विश्वास करना कि
कुछ है जो बचा रहेगा।
जब मेरी प्रिय लड़की बदले में,
किसी को दे डालेगी अपनी चोटी
मिसाल के लिए जैसे समय को ।
मैं चाहता हूँ कोष्ठक से बाहर निकालना
गुणक को
जिसने जोड़ रखा है हमें —
मुझे, सूर्य को, आकाश को और हीरों की धूल को ।
—
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
मुझे मालूम नहीं, पृथ्वी घूमती है या नहीं
यह इस पर निर्भर करता है कि शब्द
पंक्ति में ठीक बैठ रहा है या नहीं ।
मुझे मालूम नहीं, मेरे दादा या दादी कभी बन्दर रहे या नहीं
इसलिए कि मुझे मालूम नहीं
मैं खट्टी चीज़ पसन्द करता हूँ या मीठी ।
पर मैं जानता हूँ कि मैं उबलना चाहता हूँ
चाहता हूँ कि कोई साझा कम्पन मिला दे
सूर्य को मेरे हाथ की नसों से ।
चाहता हूँ कि तारे की किरणें चूमें
मेरी आँख की किरणों को
जैसे एक हिरण चूमता है दूसरे को
(ओह, कितनी सुन्दर आँखें पाई हैं हिरणों ने !)
चाहता हूँ कि जब काँपने लगूँ
यह साझा कम्पन
ब्रह्माण्ड के कम्पन से मिल जाए ।
चाहता हूँ विश्वास करना कि
कुछ है जो बचा रहेगा।
जब मेरी प्रिय लड़की बदले में,
किसी को दे डालेगी अपनी चोटी
मिसाल के लिए जैसे समय को ।
मैं चाहता हूँ कोष्ठक से बाहर निकालना
गुणक को
जिसने जोड़ रखा है हमें —
मुझे, सूर्य को, आकाश को और हीरों की धूल को ।
—
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
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